सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान बेंच तीन तलाक पर कल अपना फैसला सुना सकता है, कोर्ट तय करेगी कि तीन तलाक महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करती है या नहीं, यह कानूनन वैध है या नहीं और तीन तलाक इस्लाम का असल हिस्सा है या नहीं? इस बेंच में सभी धर्मों के जज शामिल हैं
गौरतलब है कि इस पर सुप्रीम कोर्ट में 11 /मई 18 / मई तक चर्चा हुई थी और इस फैसले को सुरक्षित रख लिया गया था .समाती के दौरान कोर्ट ने कहा था कि ऐसे संगठन भी हैं जो कहते हैं कि तीन तलाक सही है लेकिन यह मुस्लिम समुदाय में शादी को तोड़ने का सबसे बुरा तरीका है अदालत ने सवाल किया कि जो धर्म के अनुसार अवेध है वह कानून के तहत वैध ठहराया जा सकता है?
जो परमेश्वर की नज़र में पाप है क्या इसे मजहब में लिया जा सकता है? सुनवाई के दौरान यह भी कहा गया था कि कैसे एक गुनहगार प्रक्रिया विश्वास का हिस्सा बन सकता है, कुरान में पहले ही तलाक की प्रक्रिया वर्णित है तो तीन तलाक की जरूरत क्या है? दरअसल सायरा बानो ने तीन तलाकों के खिलाफ अदालत में याचिका दायर की थी। सायरा ने कहा कि था कि तीन तलाक न ही इस्लाम का हिस्सा है
और न ही विश्वास का- उन्हों ने कहा था कि मेरा विश्वास है कि मेरे और भगवान के बीच तीन तलाक पाप है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का भी यही कहना है कि यह बुरा है पाप है और अवांछनीय है। मार्च 2016 में उत्तराखंड की सायरा बानो नामक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके तीन तलाक, हलाला और एक से जीयादह वैवाहिक को असंवैधानिक करार दिए जाने की मांग की थी।
बानो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन कानून 1937 की धारा 2 की संवैधानिकता को चुनौती दी है। कोर्ट में दाखिल याचिका में सायरा ने कहा है कि मुस्लिम महिलाओं के हाथ बंधे हुए हैं और उन पर तलाक की तलवार हमेशा लटकती रहती है, वहीं पति के पास यह अधिकार होता है कि वह जब चाहें तलाक दे।
गौरतलब है कि उस संबंध में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने हस्ताक्षर अभियान चलाया था जिस को महिलाओं ने सराहना की थी और इसे व्यवस्था में हस्तक्षेप बताते हुए कड़ोरों महिलाओं ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के हस्ताक्षर अभियान में शामिल होकर सरकार को यह जाहिर किया था कि मुस्लिम महिला मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के साथ हैं
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