“उत्तर प्रदेश का मुसलमानों का राजनेतिक इतिहास,

मेहदी हसन एैनी के क़लम से

स्वतंत्र भारत में लोकतंत्र की घोषणा के बाद से आज तक दिल्ली का रास्ता सदैव से उत्तर प्रदेश से हो कर ही गुज़रता है,उत्तर प्रदेश की राजनीति में जिस का दबदबा होगा राष्ट्रीय राजनीति में भी उसी का सिक्का बोलता है, 
उदाहरण हेतू राज्सभा के 238 मिम्बरों में से 31 मिम्बर,
और लोकसभा के 538 मिम्बरस में से 80 मिम्बरस उत्तरप्रदेश से चुन कर दोनों ईवानों में पहुंचते हैं,
और उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोट बैंक ही सफलता व असफलता की दिशा तय करता है,
क्योंकि 80 लोकसभा सीटों में से 40 सीटें एैसी हैं जहां मुस्लिम वोटर्स निर्णायक भुमिका निभाते हैं,
इस लिए स्वतन्त्रता के पश्चात् से ही सेक्युलरिज़्म के नाम पर हर पार्टी मुसलमानों को लुभाती आई है, 
सन19 80 तक तो हर पार्टी का SLOGAN सेक्युलरिज़्म और लोकतंत्र ही था,
कांग्रेस भी समाजवाद को अपना चिन्ह बताती थी,नेहरू जी का समाजवाद भारतीय राजनीति की नीति बतायी जाती थी,
फिर इंदिरा गांधी का साम्राज्यवाद आया,
डिक्टेटरशिप ने एक नयी गाथा लिखी गयी,
इंदिरा गांधी ने पूरे देश को अपनी सलतनत समझ कर जब जिस प्रदेश की हुकूमत में घुसना चाहा,सिर्फ दखल अंदाज़ी ही नही की,बल्कि वहां कि हुकूमतों को गिराने में भी अहम भुमिका निभाई,
फिर 1980 में राष्ट्रीय सेवक संघ के बी०जे०पी० में सम्मिलित होने के बाद की राजनीति बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक और हिन्दू बनाम मुस्लिम की होने लगी, 
देखते ही देखते इस राजनीति ने ओछा और घटिया रूप धारण किया, हिंदुत्व बी०जे०पी० का प्रतीक बन गया तो लोकतंत्र अन्य पार्टियों की नौकरानी बन गई, बाबरी मस्जिद की शहादत हुई, यू०पी० से आस्तीन का सांप का कांग्रेस और लोकतंत्र की खुल्लम खुल्ला दुश्मन भारतीय जनता पार्टी का सफ़ाया हुआ,
कार सेवकों पर गोली चलवा कर मुलायम सिंह “
मुल्ला मुलायम” हो गए और धीरे धीरे इसी को अपना ‘इलेक्शन इशू’ बना कर मुसलमानों को इमोशनल ब्लैक मेल करके वह अपनी पार्टी को उत्तर प्रदेश की रीढ़ की हड्डी बनाने में सफ़ल हो गए, दूसरी ओर दलित मुस्लिम विचारधारा पर काम करते हुए कांशी राम व मायावती ने यू०पी० में अपने पैर जमाए, कभी पोजीशन तो कभी अपोज़ीशन में रहना समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी का मिज़ाज बन गया है,
यही सिलसिला पिछले 25 वर्षों से चल रहा है, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और बी०जे०पी० ने बाद में वापसी के अत्यधिक प्रयास किये लेकिन विफलता ही हाथ लगी, मुसलमानों को दिया हुआ ज़ख्म उनके लिए नासूर बनने लगा तो बी०जे०पी० के दृष्टिकोण प्रमुख “संघ” ने पैंतरा बदला, 
मुलायम को राष्ट्रीय राजनीति में भागीदारी का ख़्वाब दिखा कर उन्हें हिंदुत्व को बढ़ावा देने के लिए तैयार कर लिया 2012 में मुसलमानों के एक तरफ़ा वोटिंग से सत्ता की कुर्सी तक पहुँचने वाले मुल्ला मुलायम मुसलमानों को भूल बैठे और अपना सेक्युलर ज़मीर नागपुर में गिरवी रख कर यू०पी० में संघियों को खुली छूट दे दी. धीरे धीरे उत्तर प्रदेश फसाद प्रदेश बन गया,
कोसी कलां, मुरादाबाद, बरेली और फिर सब से भयानक, मुजफ़्फरनगर फसाद जैसे  करीब 600 फसाद करवा कर संघियों ने मुसलमानों को घुटने पर ला दिया,
वैसे दंगों का जिक्र होते ही अमूमन 1984 का सिख दंगा, 2002 का गोधरा या फिर  मुजफ्फरनगर की बड़ी घटनाएं ही जेहन में कौंध उठतीं हैं। यानी कुछ ही बड़े दंगे हर किसी को याद  हैं। मगर आपको जानकर हैरानी ही नहीं चिंता भी होगी कि देश में अब तक हजार दो हजार बार नहीं बल्कि पूरे 25 हजार बार दंगे हो चुके हैं। जिनकी भेंट साढ़े दस हजार से अधिक हंसती-खेलती जिंदगियां चढ़ चुकी हैं। वहीं  30 हजार से अधिक लोग मारपीट में अपाहिज होकर आज भी तिल-तिल कर मरने को मजबूर हैं। लगभग हर राज्य उन्मादी भीड़ के खूनी खेल का गवाह बन चुका है। देश में पिछले दो दशक मे हुए दंगों की संख्या और मरने तथा घायलों के बारे में खुलासा हुआ है यूपी के गाजीपुर निवासी शम्स तबरेज हाशमी की आरटीआई से। उन्होंने गृहमंत्रालय से दंगों व पीड़ितों के बारे में सवालात किये थे,
आरटीआई आवेदनकर्ता हाशमी को गृहमंत्रालय की उपसचिव रीना गुहा ने सभी राज्यों में हुए दंगों, मरने व घायलों की जानकारी आदि बिंदुओं पर पूछे गए सवालों का जवाब दिया है। रिपोर्ट का मजमून निकालें तो वर्ष 1990 से लेकर 2015 के बीच देश में अब तक 25337 दंगे हुए। जिसमे कुल 10452 लोगों की हत्या हुई तो 30515 लोगों को घायल होना पड़ा। यह तो सरकारी आंकडे़ रहे और हताहत लोगों की संख्या और ज्यादा होने की आशंका है,
आरटीआई में यह भी बताया गया है कि उत्तर प्रदेश के इस सपा राज में सर्वाधिक 637 दंगे हुए हैं,
सपा के राज में 2012 से 2015 तक सर्वाधिक 637 दंगे हुए। जिसमें 162 लोगों की हत्या और डेढ़ हजार से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हुए।
यूपी में 2013 रहा सबसे डरावना साल रहा,
उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए वर्ष 2013 सबसे ज्यादा डरावना रहा। इस साल सपा सरकार की नाकामी से उसके नाम 247 दंगों का अनचाहा रिकार्ड चढ़ गया। कानून-व्यवस्था की नाकामी से सिर्फ एक साल में ही यूपी को छोटे-बड़े कुल 247 दंगे झेलने पड़े।
और जाहिर सी बात है कि  इन सब में मुलायम सिंह और अखिलेश सरकार पूरी तरह से जिम्मेदार है,जो कंधे से कंधा मिला कर 
उन्मादियों  और फ़सादियों के साथ रही, 
लॉ एंड आर्डर का जनाज़ा निकाल दिया गया,
यू०पी० में गुजरात दुहराया गया, और अब फिर जगह जगह मुज़फ़्फ़रनगर दोहराने की धमकियाँ बी०जे०पी० के नेता दे रहे हैं, हद तो तब हुई कि अदालत की  कमीशन द्वारा अखिलेश सरकार ने मुज़फ़्फ़रनगर फसाद  से जुङे  नेताओं को क्लीन चिट दिला दिया, मुआवज़े के नाम पर ख़ूब मारामारी हुई बेगुनाहों की जायेदादें लूट ली गयीं, 
शासन  व प्रशासन खमोश तमाशायी बनी रही, 
मुलायम पर “संघ” का ज्वर इस स्तर पर चढ़ गया है कि वह कहते हैं “कार सेवकों पर गोली चलवाने पर आज तक उन्हें पश्चाताप है”,
आरक्षण का झूठा वादा करके वोट लेने के बाद से आज तक मुलायम पुनः इस पर बोले ही नहीं, 
इसी पर बस नहीं उर्दू की हैसियत से खिलवाड़ किया जाने लगा, आर०टी०आई० अब उर्दू में नहीं  मिलेगी,  बिजली संकट  से पूरा प्रदेश झूझ रहा है.
नरेगा, मनरेगा, लोहिया और इसी प्रकार के सैंकड़ों प्रोजेक्ट सरकारी कार्यकर्ताओं के भ्रष्टाचार का शिकार  हो रही है, लैपटॉप बाँट कर तरक़्क़ी की राजनीति करने वाले अखिलेश को पता भी नहीं कि उनके बाप ने समाजवादी पार्टी को बी०जे०पी० के हाथों बेंच दिया है, 
यहीं नहीं,रिश्वत खोरी,भर्ष्ट्राचार,घोटालों,और इन सब से बढ़ कर हत्या,व रेप की बढ़ती घटनाओं ने उत्तरप्रदेश से ला एण्ड आर्डर को खत्म ही कर दिया है.
अब अगर अपराधिक आंकड़ों की बात करें तो 
कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में वर्ष 2013-14 में महिलाआें के खिलाफ अपराधों में बहुत तेजी से बढोत्तरी हुई। वर्ष 2012-13 में जहां यह संख्या 24552 थी वह 2013-14 में 31810 हो गई और वर्ष 2014-15 में भी इसमें कोई कमी नहीं हुई।
कैग ने कहा कि देश में होने वाली कुल आपराधिक घटनाआें में 12.7 प्रतिशत के साथ उत्तर प्रदेश सबसे उपर है और यहां महिलाआें के विरूद्व अपराध की घटनाएं सर्वाधिक हैं..और इसकी वजह पुलिसकर्मियों की कमी भी बताई गयी है.
पुलिसकर्मियों की संख्या में 55 प्रतिशत की कमी है और यदि इसे दूर नहीं किया गया तो स्थिति और भी बिगड सकती है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा पुलिस बल में महिलाआें की संख्या 33 प्रतिशत किए जाने की सलाह के विपरीत उत्तर प्रदेश में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या मात्र 4.55 प्रतिशत ही है। इसलिए नाबालिग लड़कियों एवं महिलाआें के विरूद्व होने वाले अपराधों की बढती संख्या को देखते हुए महिला पुलिसकर्मियों की संख्या में पर्याप्त बढोत्तरी की जानी चाहिए। अपनी रिपोर्ट में कैग ने जो आंकडा दिया है, उसके मुताबिक वर्ष 2012-13 में बलात्कार का शिकार होने वाली नाबालिग लड़कियों की संख्या 1033 थी वह 2014-15 में 1619 पर पहुंच गई।
इसी दौरान नाबालिग लड़कियों की अस्मत लूटने की कोशिश की घटनाएं 2280 से बढ़कर वर्ष 2014-15 में 4297 तक पहुंच गई। इससे पूर्व प्रश्नकाल के दौरान सरकार ने भाजपा विधान दल के नेता सतीश महाना के प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि मार्च 2016 से 18 अगस्त 2016 तक प्रदेश में बलात्कार की 1012, महिलाआें के उत्पीड़न की 4520 , लूट की 1386 तथा डकैती की 86 घटनाएं हुई है। 
 अब आते हैं मायावती की माया देखने लोकसभा चुनाव में मायावती ने बी०जे०पी० से आन्तरिक रूप से सांठ गाँठ करके सम्पूर्ण दलित वोट बी०जे०पी० को दिलवाए, पूरे चुनाव अंतराल में चुप रहीं, जिससे लाभ उठा कर बी०जे०पी० ने 80 सीटें निकाली और यू०पी में खूनी खेल आरम्भ किया,
वैसे ला एण्ड आर्डर के हवाले से सपा व बसपा के दौर की बात करें तो दोनों ही इस मुआमले में बराबर हैं.
क्राइम रिपोर्टर मनोज कुमार के मुताबिक 
देश में इस समय उत्तर प्रदेश सबसे बड़ी क्राइम स्टेट बन चुकी है।हर दिन 24 रेप…13 मर्डर.. 21 अटेम्ट टू रेप… 33 किडनैपिंग… 19 दंगे… और 136 चोरियां हो रही हैं।
एक दिन में 7650 क्राइम की घटनाएं हो रही हैं। 
इतिहास में पहली बार 5 अलग-अलग क्राइम में यूपी, इंडिया में टॉप पर रहा।
मायावती सरकार में प्रदेश 3 मामलों में इंडिया में नंबर 1 पर था।पिछले 4 साल में यूपी में 93 लाख से ज्यादा क्राइम की घटनाएं हुईं हैं।71% क्राइम सपा नेताओं के जिलों में हुआ ।
मायावती सरकार में मुक़दमे दर्ज नहीं होते थे।
बसपा सरकार में 22347 दंगे हुए थे तो अखिलेश सरकार में 25007 ।मायावती सरकार की तुलना में अखिलेश सरकार में अब तक क्राइम में 16% इजाफा हुआ है.
इस पूरे लेखा जोखा के बात यह बात तो साफ़ जाहिर है कि सपा व बसपा दोनों ही सरकारें  उत्तर प्रदेश में 
ला एण्ड आर्डर व  व्यवस्था बनाये रखने में पूरी तरह से नाकाम हो चुकी है.
ऊपर से दंगों ने इस को हिंसा प्रदेश बना दिया है,
और इन सब में मुसलमानों का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है,
एैसे में  साम्प्रदायिक ताकतों को यू०पी० में आने से रोकने के लिए बिहार की तरह ही विशाल एकता व महागठबंधन समय की आवश्यकता है, 
मुज़फ़्फ़रनगर फ़साद की वजह से पशचिमी उत्तरप्रदेश के मुसलमान मुलायम सिंह से बहुत नाराज़ हैं 
पू्रबी उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी स्थलीय विकास की वजह से मुक़ाबले में स्थिति में है, लेकिन मुलायम की भगुवागर्दी के परिणामस्वरूप मुसलमानों  का परेशान होना  अपनी जगह जायज़ है, 
इन दोनों पार्टियों के सिवा कुछ अन्य क्षेत्रीय पार्टियाँ भी केवल मुस्लिम वोट बाँट कर बी०जे०पी० का राह आसान करने में लगी हैं, 
एैसे में पीस पार्टी पूरबी यू.पी में जाति के आधार पर 
कुछ पिछड़ी जातियों के साथ मिल कर राजनेतिक 
गठबंधन बना कर कुछ नया करने की कोशिश कर रही है,कोएद और एम.आई,एम को भी इनसे मिलकर ही कोई क़दम बढ़ाना चाहिए,
वैसे मुस्लिम वोटों का बिखराव अगर ना हो तो आंकड़ें बताते हैं कि सत्ता में मुसलमान आसानी क साथ पहुंच सकते हैं,क्योंकि 2012 चुनाव में कुल 67 मुस्लिम 
उम्मीदवार  जीत कर असेम्बली पहुंचे,
और 63 मिम्बर दूसरे नम्बर पर थे,
मतलब ये है कि 130 उम्मीदवार असेम्बली पहुंचने के रेस में थे,जिनमें से कुछ एैसे भी ते जो सिर्फ़ कुछ सौ वोटों के अंतराल से हारे थे,
अगर वोटिंग प्रतिशत की बात करें तो 2012 इलेक्शन में रामपूर में 52%,मेरठ में,53%,मुरादाबाद में 46%,
बिजनौर में 42% मुज़फ्फर नगर में 38%,
कैराना में 39%अमरोहा में 44%सम्भल में 36%
बरैली में 25%,सरस्वती में 23%,जौनपूर में 21%
बदायूं,आज़मगढ़,अलीगढ़,सीतापूर,लखीमपूर,
डुमरिया गंज,में 20%, मुसलमानों ने अपने वोट का एकतरफा इस्तेमाल किया और अपनी पसंद के उम्मीदवारों को जिता कर असेम्बली तक पहुंचाया.
जबकि सुल्तानपूर,वारणसी,गाजीपूर,फ़र्रुखाबाद में 18-19%में मुस्लिम वोट बट गया और वो अपनी पसंद का उम्मीदवार नहीं चुन सके.
मुसलमानों की विधानसभा वार संख्या विधानसभावार मुसलमानों का वोट देखें तो 18 विधानसभा सीटों पर मुस्लिमों की जनसंख्या एक लाख से ज्यादा है। वहीं 23 सीटों पर मुसलमानों का वोट 75 हजार से ज्यादा। 48 सीटों पर मुसलमानों का वोट करीब 50 हजार से ज्यादा है। यानी इन सीटों पर मुसलमान सिर्फ एक मुस्लिम उम्मीदवार को वोट दे तो वह आसानी से चुनाव जीत सकता है।
वैसे सरकारी रिकार्ड में उत्तर प्रदेश में मुस्लिम आबादी 19% है,जबकि गैर सरकारी सर्वे में 22% है,
एैसे में यू.पी के 80 लोकसभा सीटों में से 53 
और 403 विधानसभा सीटों में से 209 सीटें एैसी हैं 
जहां से मुस्लिम वोटर्स अपनी पसंद के उम्मीदवारो 
को चुन कर हुकूमत में बिठा सकते हैं,
और अपनी हुकूमत भी बना सकते हैं,
लेकिन अफ़सोस ये है कि मुस्लिम कियादत 
वालिएंटर पर है,
एैसे में एक महागठबंधन के बगैर साम्प्रदायिक ताकतों को रोकना ना मुमकिन होगा.
और अगर इन पार्टियों ने सीख ना ली और एक ना हुए तो याद रहे कि भगवा ब्रिगेड उत्तरप्रदेश का विधानसभा चुनाव इस बार भी हिन्दू मुस्लिम आधार पर लड़े जाने के प्रयास में है,
अब लीडरशिप के मज़बूत न होने, धार्मिक व राजनीतिक नेताओं द्वारा राजनेतिक कुर्सियों की चापलूसी व मफ़ादपरस्ती, उलमा और बुद्धजीवियों  में आंतरिक विरुद्धता और जनता की अजागरूकता की वजह से मुस्लिम वोट बैंक एक बार फिर कहीं हज़ार भागों में बंट न जाए, और बी०जे०पी० बहुसंख्यकों को हिंदुत्व के आधार पर एक कर के देश को “हिन्दू राष्ट्र” बनाने और “राम मंदिर” के निर्माण को अपनी पारंपरिक इच्छाओं की पूर्ति के पहली सीढ़ी 
पर क़दम न रख दे, यह इस समय सबसे बड़ा मसला है, अब मुसलमानों के समक्ष सब से अहम प्रश्न यह है कि 2017 में वह कहाँ जाएं, देश की स्थिति दिन दिन और ही बेकार और लोकतंत्र के लिये ज़हर बनती जा रही है.
ब्राह्मणवादों ने भारत को सावलकर नीति के अनुसार बनाने का चैलेंज किया है, और वह इस मिशन में सभी ऊर्जा का प्रयोग कर रहे हैं, अल्पसंख्यकों के इर्द गिर्द इस देश में घेरा तंग किया जा रहा है, ख़ालिद मुजाहिद, तारिक़ क़ासमी और न जाने कितने बेगुनाहों पर यू०पी० में होने वाला ज़ुल्म मुलायम सरकार पर एक बदनुमा दाग़ है, राजा भैया जैसे माफियाओं को बेनियाम करके आसमान पर पहुंचाना ही डी०एस०पी० ज़ियाउलहक़ के क़त्ल की वजह है, मुलायम जी इस के एक्शन प्लेयर हैं, कांग्रेस हो या बी०जे०पी०, एस०पी० हो या बी०एस०पी० सब “फूट डालो और शासन करो” की पालिसी के अनुसार ही काम करती है, बलि का बकरा मुसलामानों का बनना यक़ीनी है, ऐसी  परिस्थिति में मुस्लिम दलित व पिछड़ा समाज  राजनीतिक एकता की अत्यंत आवश्यकता है, प्रदेश को भर्ष्ट्राचार,हिंसा,दंगा,और अपराध से बचाने,
और सेक्युलरिज़्म की रक्षा के लिए यही आधार है, इसके लिए उलमा,बुद्धजीवियों  को आगे आना पड़ेगा, क़ौम को जागरूक करने के साथ साथ एक विशाल राजनीतिक एकता के लिए तन, मन, धन की बाज़ी लगानी पड़ेगी,
उन्हें चाहिए कि एकता की बात ही नहीं इस पर अमल भी करें, लोकतंत्र की रक्षा एवम प्रसार हेतु सेक्युलर एकता की फ़िज़ा बनाएं, जनता को उन के वोट का अधिकार समझाएं, सम्मेलनों, जलसों, और सेमिनारों में राजनीतिक एकता को केंद्रीय इशू बना कर अमल करने वाले कार्यों का निश्चय करें, अधिवक्ताओं, लेखकों, कवियों और समाज सेवकों को यह ज़िम्मेदारी दे दें, बस यही इस समय की आवश्यकता है वरना याद रखिए अगर हम बंटे,  मिल्लत के मुक़ाबले में अपने फ़ायदे को प्राथमिकता दी हो तो हर शहर मुज़फ़्फ़रनगर व गुजरात बन जायेगा, खून की नदियां बह पड़ेंगी, जेल की सलाखें मज़लूम उलमा व नवजवानों से भर जाएंगी, बाबरी मस्जिद की जगह राम मन्दिर बनाने के नाम पर फिर कारसेवा होगी, और सम्पूर्ण भारतवर्ष फिर खून का बाज़ार बन जायेगा, मस्जिदों व मदरसों और धार्मिकस्थलों की पवित्रता को ठेस पहुंचायी जायेगी, और इन सब के ज़िम्मेदार हम ख़ुद होंगें,
उत्तरप्रदेश का चुनाव ही 2019 की दिशा बतला देगा, इसलिए अल्पसंख्यकों  व दलितों और पिछड़ों को एकजुट हो कर क़दम से क़दम, कंधे से कंधा मिला कर चलना अत्यंत आवश्यक है, ताकि फ़िरक़ापरस्तों की सभी कूटनीति विफ़ल हो सकें,


Discover more from Millat Times

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Discover more from Millat Times

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading