चार घंटे के अंदर कैसे बाबरी मस्जिद का नामोनिशान मिटा दिया गया,सुनिए मृत्युंजय की जबानी

06,दिसंबर2017:By:मृत्युंजय कुमार झा,वरिष्ठ पत्रकार
अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने को आज पच्चीस साल पूरे हो गए हैं. पच्चीस साल बाद न तो विवाद सुलझा है और न ही राजनीति खत्म हुई है. अब गुजरात में चुनाव से पहले एक बार फिर मुद्दा गर्म है. आखिर छह दिसंबर को क्या हुआ था? जानिए 1992 में अयोध्या में मौजूद पत्रकार मृत्युंजय कुमार झा की जुबानी.

राम मंदिर आंदोलन की गहमागहमी के बीच इसकी रिपोर्टिंग के लिए मैं 22 नवंबर, 1992 को अयोध्या पहुंचा. शहर में कारसेवकों का भारी जमावड़ा, उनकी भाषा, उनके तेवर और शहर की फिजा देखकर मुझे 25-26 नवंबर तक ये एहसास हो चला था कि इस बार सांकेतिक नहीं, बल्कि कुछ होगा. इस नतीजे पर मैं इस वजह से पहुंचा क्योंकि मैंने 1990 में भी अयोध्या में रहकर राम मंदिर आंदोलन की रिपोर्टिंग की थी. दोनों की फिजा अलग थी और अंत भी अलग हुआ.

सुबह से ही माहौल में गहमागहमी थी. भीड़ बढ़ रही थी. करीब 4 से 5 लाख कारसेवक बाबरी मस्जिद के ढांचे के आसपास इकट्ठा हो गए थे. 12 बजे के आसपास बाबरी मस्जिद के पीछले इलाके से कुछ कारसेवक मस्जिद पर चढ़ने में कामयाब हो गए. उनके हाथों में कुदाल थे, फावड़े थे, रस्सियां थीं. छेनी हथौड़े जैसे छोटे मोटे हथियार भी थे.

चंद कारसेवकों के चढ़ने के साथ ही कारसेवकों की तादाद बढ़ती गई. इस तरह पहले गुंबद को गिरा दिया गया. और एक-एक करके तीनों गुंबद गिरा दिए गए. करीब तीन बज चुके थे. उसके बाद जिसके हाथ में जो था, बाबरी मस्जिद के इर्दगिर्द की दीवार को साफ करने में लग गए. डंडे, छेनी, चाकू…सभी से पूरी सफाई की गई. चार घंटे में मस्जिद का नामोनिशान मिटा दिया गया.

इस दौरान सीता रसोई के पास सुप्रीम कोर्ट के ऑबजर्वर और कुछ अधिकारी बैठे थे. उस वक्त के अयोध्या के एसपी वहां के मौजूद थे. जो बाद में बीजेपी के टिकट से सांसद बने. उन्होंने पुलिस को आंसू गैस के गोले छोड़ने और हवा में गोलियां चलाने के लिए कहा. लेकिन पुलिस ने अनसुनी कर दी.

इस दौरान उन पत्रकारों पर हमले किए गए जिनके पास कैमरे थे. हम मानस धर्मशाला की छत पर थे. हमारे कैमरामैन भरत राज लगातार शूट कर रहे थे. हमारा कैमरा लगातार चलता रहा, हम पर हमले नहीं हुए. जब मस्जिद तोड़ी जा रही थी तो माइक और लाउडस्पीकर से नारे लगे थे… एक धक्का और दो, बाबरी मस्जिद को तोड़ दो.

इस दौरान राम चबूतरा के पास बीजेपी के कई सीनियर नेता मौजूद थे. मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, रामकृष्ण परमहंस जैसे नेता मौजूद थे, जबकि आडवाणी चबूतरे के नीचे एक कमरे में चले गए थे.

तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से मस्जिद की हिफाजत का वादा किया था, इसके साथ ही ये भी कहा था कि मंदिर वहीं बनाएंगे. रात करीब दो बजे अस्थाई मंदिर का निर्माण किया गया और उसके बाद सीआरपीएफ और आरपीएफ ने कारसेवकों को वहां से हटाया.’’

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