बिहार में हाल के साम्प्रदायिक दंगे और तेजस्वी यादव की भूमिका

बिहार में हाल के साम्प्रदायिक दंगे और तेजस्वी यादव की भूमिका

तनवीर आलम:बिहार में जब भी साम्प्रदायिक दंगे की बात आती है तो उसको रोकने में सबसे सशक्त जिस ब्यक्ति का नाम दिमाग में कौंधता है वो है ‘लालू यादव’। लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल की बागडोर संभाल चुके उनके पुत्र तेजस्वी यादव से भी बिहार के मुस्लिम समाज की यही अपेक्षा ‘थी’। मैं ‘थी’ का इसलिए प्रयोग कर रहा हूँ कि 2015 से लेकर 2017 तक उनके उप-मुख्यमंत्री के कार्यकाल और उसके बाद नेता प्रतिपक्ष, दोनों भूमिका में वो ‘साम्प्रदायिकता’ के मुद्दे पर असफल हो चुके है। उनके उप-मुख्यमंत्री रहते चाहे वो सिवान और छपरा के दंगे हों, चाहे नवादा में पुलिस द्वारा मुसलमानों के घरों में घुसकर मार-पिटाई लूटपाट की घटना हो या इस वर्ष नेता प्रतिपक्ष रहते राम नवमी के अवसर पर बिहार भर में हुए साम्प्रदायिक दंगे हों तेजस्वी यादव हर बार हवाई बयानबाज़ी भर तक सीमित रहे हैं। दो सप्ताह पूर्व दुर्गा पूजा के अवसर पर हुए सीतामढ़ी के दंगों की राख का ढेर अभी भी बुझा नही है।

लेकिन तेजस्वी यादव को सीतामढ़ी के मुसलमानों की सुध लेने का समय नही है। ये वही सीतामढ़ी है जहां 1992 में हुए दंगों को लालू यादव ने मुख्यमंत्री रहते 24 घंटे में कंट्रोल किया था। खुद कैम्प लगाकर बैठ गए थे लालू। असल मुसलमानो ने ‘हीरोइज़्म’ के प्रति दीवानगी और लालू अंधभक्ति के कारण तेजस्वी की इस असफल भूमिका को समझने और आकलन करने की सलाहियत खो दी है।

मुसलमानों ने लालू यादव का आंख बंद करके जो समर्थन किया उसकी मात्र बड़ी वजह थी साम्प्रदायिकता के सवाल पर लालू यादव का कोई समझौता नही करना। अगर तेजस्वी में वो गुण नही है तो सवाल है कि एक आम मुसलमान तेजस्वी यादव को क्यों समर्थन करे? क्या तेजस्वी यादव के भाषणों से मुसलमानो की सुरक्षा हो जाएगी? अगर तेजस्वी यादव अपनी ज़ात के लोगों को ये संदेश देने में असफल है कि मुस्लिम-यादव समीकरण का मूल कारण यदुवंशियों का मुसलमानो के साथ खड़े रहना और दंगों का दमन है तो तेजस्वी यादव मुसलमानो को क्यों चाहिए? मुसलमानो को अच्छी अंग्रेज़ी बोलता, मंच पर अपनी वाक्पटुता से एंकर को लाजवाब करता तेजस्वी नही हाथ में लाठी लेकर दंगाइयों के पीछे भागता तेजस्वी चाहिए। दंगाग्रस्त शहरों से अपने मुस्लिम ‘कुरियर बॉय’ द्वारा रिपोर्ट मंगवाकर अपनी कोठी में बैठा तेजस्वी नही बल्कि दंगाग्रस्त जगह पर दोनों हाथ बांधे और प्राशासन को हंटर से हांकता तेजस्वी चाहिए।

राजद का मुस्लिम-यादव नेचुरल अलायन्स इसी बिंदु पर होता आया है। दंगों में यादवों की संलिप्तता पर लालू और मुलायम के सत्ता में रहते भी आलोचना होती रही है और अब भी इसपर बहस होती रहती है कि वोट भी यादव को दो और गला भी यादव से कटवाओ, क्यों?

राजद में बैठे मुस्लिम नेताओं से भी तेजस्वी के इस गैर जिम्मेदाराना भूमिका पर सीधा सवाल किया जाना चाहिए। राजकुमार, सम्राट और राजमाता जैसे चाटुकारिक, अलोकतांत्रिक, गैर समाजवादी शब्दों का प्रयोग करने वाले पार्टी का मुस्लिम नेतृत्व अगर इस बात को तेजस्वी तक रखने में नाकाम है तो फिर जनता इसका सीधा जवाब विरोध से दे। अधिकतर नेता चाटुकारी के बलबूते टिका होता है इसलिए अगर उसमें इतना दम नही की तेजस्वी से सवाल कर सकें तो मुसलमान अपना स्टैंड साफ रखे ‘वोट दिया है तो मेरी नौकरी करो वरना चलते बनो। ‘

मुसलमान बंधुआ मजदूर नही, साथ नही तो वोट नही

तनवीर आलम
अध्यक्ष,
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय पूर्व छात्र संगठन, महाराष्ट्र


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