युद्ध नहीं समझदारी

मिल्लत टाइम्स
सय्यद मोहम्मद ज़ुलक़रनैन
२३/०९/२०१६

उरी आतंकी हमले के बाद लोगों में दुःख है, और गुस्सा भी, चारो तरफ युद्ध का उन्माद बढा है, युद्ध का उन्माद बढ़ने की वजह राष्ट्रभक्ति तो स्वाभाविक तौर पर है ही, न्यूज़ चैनलो मे बैठ रहे विवेकशून्य तथा कथित विशेषज्ञओ ने भी युद्ध को सर्बाधिक स्रेस्थ विकल्प बताकर आग में घी डालने का काम किया है, न्यूज़ चैनलो को तो लोगों को समझाना चाहये कि ऐसे मुद्दे उत्तजेक बयानों से नहीं सुलझते,लेकिन इसके उलट उन्होंने अपने स्टूडियो को ही वाक -युद्ध का सथल बना दिया है, दरअसल,भारत का पाकिस्तान से युद्ध करना तर्कसंगत नहीं,दोनों ही देश परमाणु हथयारो से लैस है, और युद्ध में नुक्सान दोनों राष्ट्रों का होगा, लेकिन सत्य यह है कि युद्ध की स्थिति भारत को पीछे ले जाएगी,मानव विकास सूचकांक यानि hdi में भारत पञ्च पायदान की छलांग लगाकर १३० वे स्थान पर पहुँच गया है, वहीँ पकिस्तान १४२ वे स्थान पर है, विश्व बैंक के आंकड़े के अनुसार, भारतीय आबादी का कुल १२.४ प्रतिसत हिस्सा गरीबी रेखा के निचे है, पर पाकिस्तान इसकी तुलना में काफी पीछे है लगभग ५० प्रतिसत पाकिस्तानी आबादी गरीबी रेखा के निचे है.ऐसे में, जब कई देश हमारी तरह अपेक्षा भरी नजरो से देख रहे है,तो हम युद्ध का रास्ता चुनकर अपनी इकॉनमी को चोट क्यों पहुंचाए? भारत और पाकिस्तान का मसला कूटनीतिक तरीके से किसी अंजाम तक पहुँच सकता है, वैश्विक स्तर पर उसे अलग-थलग करने की कोशिश सही और ठोश कदम है, विश्व के देशो को पाकिस्तानी सरजमी पर पल रहे आतंकवाद के प्रति आगाह कर पाकिस्तान पर निर्णायक दबाव बनाया जा सकता है,


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