आरटीआई से खुलासा हुआ है कि रेलवे के पास ऐसी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है जिससे यह पता चल सके कि नरेंद्र मोदी बचपन में स्टेशन और ट्रेनों में चाय बेचते थे।
मिल्लत टाइम्स: एक आरटीआई से खुलासा हुआ है कि ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है जो यह साबित कर सके कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बचपन में रेलवे प्लेटफाॅर्म या ट्रेनों में चाय बेचते थे। कांग्रेस समर्थक और सामाजिक कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला ने आरटीआई के तहत रेलवे बोर्ड से यह जानकारी मांगी थी कि क्या ऐसा कोई रिकॉर्ड, रजिस्ट्रेशन नंबर या नरेंद्र मोदी को स्टेशन या ट्रेन में चाय बेचने के लिए निर्गत आधिकारिक पास उपलब्ध है? आईएएनएस के अनुसार, इस आरटीआई के जवाब में रेल मंत्रालय ने कहा, “रेलवे बोर्ड के पर्यटन और खानपान निदेशालय की टीजी III ब्रांच में ऐसी किसी तरह की जानकारी उपलब्ध नहीं है।”
दरअसल, नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 के लाेकसभा चुनाव के समय खुद को एक ‘चाय वाला’ बताया था। उन्होंने कहा था कि बचपन में वे स्टेशन पर और ट्रेनों में चाय बेचते थे। चुनाव के बाद भी वे अक्सर खुद को चाय वाले के रूप में दिखाते रहे। हाल ही में पीएम मोदी ने एक ट्वीट किया था, “कांग्रेस को अभी भी हैरानी है कि एक चायवाला पीएम बन गया! और, कांग्रेस की पीड़ा का कारण यह भी है कि चार पीढ़ियों ने जो जमा किया था, वो पैसा अब कुछ परिवारों के लिए नहीं, बल्कि जनता के विकास के लिए खर्च हो रहा है।”
बता दें कि कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बचपन से जुड़ी बातों को लेकर एक फिल्म ‘चलो जीते हैं’ रिलीज हुई थी। इस फिल्म को राष्ट्रपति भवन से लेकर मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस के सरकारी विद्यालयों में भी दिखाया गया। 32 मिनट की इस फिल्म में एक ‘नारू’ नाम के बच्चे का किरदार है, जो अपनी जिंदगी में काफी संघर्ष करता है। फिल्म देखने के बाद केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठोर ने कहा था, “यह पीएम मोदी के बचपन की घटनाओं से अद्भुत और प्रेरित करने वाला फिल्म है।”
भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्य और त्रिपुरा के प्रभारी सुनील देवधर ने ट्वीटर पर लिखा था, “चलो जीते हैं, नरेंद्र मोदी की जिंदगी से प्रेरित फिल्म है। चाय विक्रेता से पीएम बनने तक उनकी जीवन यात्रा समाज के कल्याण के लिए काम करने की दृढ़ इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प का एक उदाहरण है।” हालांकि, आरटीआई से मांगे गए जवाब से यह साबित नहीं हो पा रहा है कि पीएम मोदी चाय बेचते थे।
सोर्स, जनसत्ता
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