मिल्लत न्यूज नेटवर्क:नई दिल्ली:22 मई को मुस्लिम बहुल हाशिमपुरा मोहल्ले में प्लाटून कमांडर सुरेंद्र पाल सिंह के नेतृत्व में 19 पीएसी जवानों को भेजा गया था. पीएसी जवान यहां से 40-45 लोगों को अपने ट्रक में भरकर ले गए और मुरादनगर में ले जाकर गोलियां मारकर इन्हें गंगनहर में फेंक दिया था.
दिल्ली हाई कोर्ट ने 1987 के हाशिमपुरा नरसंहार मामले में पीएसी के 16 जवानों को हत्या का दोषी ठहराते हुए उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई. हाई कोर्ट ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय के 42 लोगों का नरसंहार ‘लक्षित हत्या’ थी. पीड़ितों के परिवारों को न्याय के लिए 31 साल इंतजार करना पड़ा और आर्थिक मदद उनके नुकसान की भरपाई नहीं कर सकती.
हाशिमपुरा नरसंहार में 31 साल बाद दिल्ली हाईकोर्ट का ये फैसला आया है.
दिल्ली हाईकोर्ट में 1987 के इस मामले में आरोपी पीएसी के 16 जवानों को 42 लोगों की हत्या और अन्य अपराधों के आरोपों से बरी करने के तीन साल पुराने निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी गई थी. उत्तर प्रदेश राज्य, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) और नरसंहार में बचे जुल्फिकार नासिर सहित कुछ निजी पक्षों की अपीलों पर दिल्ली हाईकोर्ट ने छह सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था जिसके बाद कोर्ट ने ये फैसला दिया है.
मामले में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री पी चिदंबरम की कथित भूमिका का पता लगाने के लिए आगे जांच की मांग को लेकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नेता सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका पर भी फैसला सुरक्षित रखा. 28 साल चले मुकदमे में 21 मार्च 2015 को तीस हजारी कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए आरोपी 16 जवानों को बरी कर दिया था.
इसी साल मुड़ा केस का रुख
दिल्ली हाईकोर्ट में एनएचआरसी की अपील पर केस का रुख इसी साल 28 मार्च को तब मुड़ा जब घटना के समय पुलिस लाइन में तैनात रणवीर सिंह विश्नोई (78) पेश हुए और उसने तीस हजारी कोर्ट में अतिरिक्त साक्ष्य के तौर पर पुलिस की जनरल डायरी पेश की. सेशन कोर्ट ने माना था कि हाशिमपुरा से पीएसी के ट्रक में 40-45 लोगों को अगवा किया गया था और इनमें से 42 लोगों को गोली मारकर मुरादनगर गंगनहर में फेंक दिया गया.
कोर्ट में पेश जीडी में 22 मई 1987 की सुबह 7.50 बजे लिसाड़ी गेट थानांतर्गत पिलोखड़ी पुलिस चौकी पर पीएसी भेजे जाने, पीएसी के जवानों, शस्त्रों और गोलियों का ब्यौरा दर्ज था. इसमें पीएसी के 17 जवानों सुरेंद्र पाल सिंह, निरंजन लाल, कमल सिंह, श्रवण कुमार, कुश कुमार, एससी शर्मा, ओम प्रकाश, समीउल्लाह, जयपाल, महेश प्रसाद, राम ध्यान, लीलाधर, हमवीर सिंह, कुंवर पाल, बुद्ध सिंह, बसंत वल्लभ और रामबीर सिंह के नाम हैं.
क्या था घटनाक्रम
अप्रैल 1987 में मेरठ में दंगे पर काबू पाने के लिए पीएसी बुलाई गई थी जिसे बाद में हटा लिया गया था. 19 मई 1987 को फिर से दंगे भड़कने और 10 लोगों के मारे जाने के बाद कर्फ्यू लगाते हुए 30 कंपनी पीएसी की बुलाई गई थी. गुलमर्ग सिनेमा में आगजनी के बाद मृतकों की संख्या 22 पर पहुंच गई थी.
22 मई को मुस्लिम बहुल हाशिमपुरा मोहल्ले में प्लाटून कमांडर सुरेंद्र पाल सिंह के नेतृत्व में 19 पीएसी जवानों को भेजा गया था. पीएसी जवान यहां से 40-45 लोगों को अपने ट्रक में भरकर ले गए और मुरादनगर में ले जाकर गोलियां मारकर इन्हें गंगनहर में फेंक दिया था.
Discover more from Millat Times
Subscribe to get the latest posts sent to your email.
