मिल्लत टाइम्स : अमरनाथ यात्रा भले ही हिंदुओं की तीर्थयात्रा हो लेकिन इस यात्रा से एक मुसलमान परिवार पुराने समय से ही जुड़ा हुआ है.
अमरनाथ गुफा को करीब 500 साल पहले खोजा गया था और इसे खोजने का श्रेय एक मुस्लिम, बूटा मलिक को दिया जाता है.
बूटा मलिक के वंशज अभी भी बटकोट नाम की जगह पर रहते हैं और अमरनाथ यात्रा से सीधे जुड़े हैं.
इसी परिवार के गुलाम हसन मलिक बताते हैं कि उन्होंने गुफा के बारे में जो सुना है उसके अनुसार इस गुफा को उनके पूर्वज बूटा मलिक ने खोजा था.
अमरनाथ- जहां जुटते हैं हिंदू-मुसलमानअमरनाथ यात्रा: जो बातें जानना ज़रूरी हैं
साधु से मुलाक़ात
वो कहते हैं, ‘बिल्कुल पौराणिक कथाओं जैसा लगता है सुनने में. हुआ ये था कि हमारे पूर्वज थे बूटा मलिक. वो गड़रिए थे. पहाड़ पर ही भेड़-बकरियां वगैरह चराते थे. वहां उनकी मुलाकात एक साधु से हुई और दोनों की दोस्ती हो गई.’
मलिक के अनुसार, ‘एक बार उन्हें सर्दी लगी तो वो उस गुफा में चले गए. गुफा में ठंड लगी तो साधु ने उन्हें एक कांगड़ी दिया जो सुबह में सोने की कांगड़ी में तब्दील हो गया.’
मलिक बताते हैं कि सुनी सुनाई बातों के अनुसार जब बूटा मलिक गुफा से निकले, तो उन्हें ढेर सारे साधुओं का एक जत्था मिला जो भगवान शिव की तलाश में घूम रहे थे.
वो कहते हैं, ‘बूटा मलिक ने उन साधुओं से कहा कि वो अभी भगवान शिव से साक्षात मिलकर आ रहे हैं और वो उन साधुओं को उस गुफा में ले गए. जब ये सभी साधु गुफा में पहुंचे तो वहां बर्फ का विशाल शिवलिंग था और साथ में पार्वती और गणेश बैठे हुए थे. वहां अमर कथा चल रही थी उस समय.’
अमरनाथ यात्राः आख़िर सुरक्षा में चूक कहाँ हुई?अमरनाथ यात्रियों और मुसलमानों के बीच है भावनात्मक रिश्ता
महाराजा रणजीत सिंह का दौर…
मलिक बताते हैं कि इस घटना के बाद अमरनाथ यात्रा शुरु हुई. बाद में कई साधु गुफा के पास से कूद कर जान देने लगे तो महाराजा रणजीत सिंह के शासन में इसे बंद किया गया.
मलिक बताते हैं कि चूंकि वो मुसलमान परिवार हैं तो उन्हें पूजा पाठ की जानकारी नहीं थी.
वो कहते हैं, ‘हमें तो पूजापाठ का पता नहीं था, तो पास के गणेश्वर गांव से कश्मीरी पंडितों को हमने बुलाया कि वो पूजा करें.’
अमरनाथ में तीन तरह के लोग रहते हैं. कश्मीरी पंडित, मलिक परिवार और महंत. ये तीनों मिल के छड़ी मुबारक की रस्म पूरी करते थे.
अमरनाथ यात्रा को लेकर विधानसभा में बिल भी पारित हुआ था, जिसमें मलिक परिवार का भी ज़िक्र है.
‘नेहरू जी आते थे कश्मीर’
गुलाम हसन बताते हैं कि जब नेहरू जी आते थे कश्मीर, तो मलिक परिवार को याद करते थे.
जवाहर लाल नेहरू लेकिन आगे चलकर हमारा पूरा महत्व फ़ारूक़ अब्दुल्ला सरकार ने खत्म कर दिया.
लेकिन वो कांगड़ी कहां है, इस बारे में पूछे जाने पर मलिक कहते हैं कि बूटा मलिक से ये कांगड़ी तत्कालीन राजाओं ने ले ली थी और अब ये किसी को नहीं पता कि ये कांगड़ी कहां है.
वो कहते हैं, ‘हमने बहुत कोशिशें कीं. उसके बारे में पता करना चाहा, लेकिन राजतरंगिणी में भी हमारे परिवार का ज़िक्र है और इस पौराणिक कथा का भी.’
लेकिन क्या बाद में बूटा मलिक को याद नहीं किया गया.
‘अमरनाथ’ का सम्मान करते हैं मुसलमान
अमरनाथ में तीन तरह के लोग रहते हैं. कश्मीरी पंडित, मलिक परिवार और महंत.
मलिक कहते हैं, ‘बूटा मलिक की मौत हुई और उसके बाद उनकी दरगाह जंगल में जाकर बनी. उन्हीं के नाम पर हमारे गांव का नाम बटकोट पड़ा है. अमरनाथ यात्रा के दौरान हम लोग मांस नहीं खाते क्योंकि हमें पता है कि इस समय में मांस खाना ठीक नहीं होता है.’
मलिक कहते हैं कि अमरनाथ उन तीर्थयात्राओं में से है जिसका कश्मीर में मुस्लिम समुदाय पूरे दिल से सम्मान करते हैं.
Discover more from Millat Times
Subscribe to get the latest posts sent to your email.