डियर, लल्लनटॉप छाप होशियार

डियर लल्लनटॉप के मीर सादिकों, मीर ताबिशों को कॉलर पकड़ कर सुना व जवाब-तलब कर रहे हैं।

डिअर, लल्लनटॉप छाप होशियार

तुमने नही सुना होगा के कभी यहूदियों ने मुस्लिम राष्ट्र में शरण ली क्यूके तुम्हारी जानकारी सीमित है , तुमने ये भी नही सुना होगा के कभी किसी इसाई ने भाग के किसी इस्लामिक लैंड में शरण ली तो इसमें तुम्हारी गलती है क्यूके तुम कम पढ़े लिखे हो , तुमने ये भी नही सुना है के कभी किसी हिन्दू ने भाग के मुस्लिम देश में शरण ली तो ये भी तुम्हारी कमी है ।

अब तुम्हारी नादानी या जाहिलपन का जिम्मेदार कोई शिक्षित और सभ्य व्यक्ति थोड़े ही है ।

वैसे सुन लो ,

आज भले ही मुस्लिम, इस्लामिक राष्ट्र सहित यूरोप सहित दुनिया भर में शरण लिया है जिनमे 90% से ज्यादा मुस्लिम अपने पड़ोस के मुस्लिम देश में ही शरण लिए हुए है ,लेकिन इतिहास में झाकोगे तो मुस्लिम राष्ट्र और मुस्लिम विपत्ति में फसे लोगो की मदद और बचाव में हमेशा खड़ा रहा है ।

जब स्पेन के सेविल्ले को इसाई द्वारा जीतने के बाद जब 1391 में जब यहूदी को खदेरा गया तब वो मजलूम meditarian साहिल को पार करके अफ्रीका के मुस्लिम इलाको नार्थ अफ्रीका (अल्जीरिया , मोरक्को , तंजानिया ) में बसे थे , फिर जब इबेरियन प्रायद्वीप की जीत मतलब reconquista के बाद बादशाह फर्डीनांड और रानी इसाबेला ने जब 1492 में स्पेन से और 1496 में पुर्तगाल से भगाया था तब भी यहूदी समुन्द्र को पार करके मुस्लिम अफ्रीका के मुस्लिम इलाको और टर्की में बसे थे । खलीफा बायेजिद द्वितीय ने उनके बसने की जरुरत को मुहैया कराने और उनमे मदद के लिए बजाप्ता अपना फरमान (राजाज्ञा ) निकाला था , सिर्फ 1492 में स्पेन से लगभग १ लाख 50 हजार लोग टर्की खिलाफत में बसे थे , इतना ही नही बलके उन मजलूम यहूदी को समुन्द्र के उस पार से इस पार लाने के जहाज भी भेजा था। फिर आते है दुसरे विश्वयुद्ध के वक़्त जब हिटलर के आदेश पे फ्रांस की विची हुकूमत ने जब यहूदी की हत्या का आदेश पारित किया तो मोरक्को के सुल्तान मोहम्मद पांचवा ने न सिर्फ अपने यहूदियों को बचाया बलके कई फ्रेंच यहूदी भी भाग के आये ( उस वक़्त हिटलर की हुकूमत फ्रांस पे थी , फ्रांस की विची सरकार उसकी मुखौटा वाली सरकार थी और मोरक्को फ्रांस का protectarate मतलब मातहत थी ) दुसरे विश्वयुद्द के वक़्त काफी इसाई और यहूदी मिडिल ईस्ट में बसे थे , सिर्फ पोलैंड के ही ३ लाख से ज्यादा इसाई ईरान में बसे थे । फिलिस्तीन , सीरिया के इलाको में भी लाखो यूरोपीय बसे थे, तबके यूरोप का एकलौता मुस्लिम मुल्क अल्बानिया में भी मुस्लिमो और उनके साथ इसाइयों ने मिलके वहा रहने वाले अति अल्पसंख्यक यहूदियों (हिटलर के दाहिना हाथ एइच्मान के अनुसार २०० यहूदी थे अल्बानिया में ) की जान बचायी थी ,बलके कुछेक यहूदी दुसरे इलाके से भी आ के जान बचाए थे । ( दुसरे विश्वयुद्ध के बाद अल्बानिया में 2000 यहूदी हो गये थे )

फिर आते है आधुनिक इतिहास में श्रीलंका से जब तमिल हिन्दू भागना शुरू हुए तो कई भारत में आये तो कई मलेशिया में भी गये थे, अभी ही सीरिया की जंग के दौरान कई ईसाई ने टर्की में शरण ली हुई है, अभी बांग्लादेश में ही रोहिंग्या मुस्लिम के साथ रोहिंग्या हिन्दू ने भी शरण लिया हुआ है , अराकान में हिन्दू काफी कम है इसलिए वहा से भागने वाले हिन्दू की भी संख्या कम है लेकिन भागे तो बांग्लादेश में शरण मिला हुआ है ।

अफ्रीका में अक्सर सिविल वार चलता रहता है तो लोग बगल के शांति वाले में देश में भाग के शरण लेते रहते है जिसमे कई बार ईसाई , मुस्लिम बहुल राष्ट्र में शरण लेते है तो कई बार मुस्लिम ईसाई बहुल राष्ट्र में शरण लेते है ।

हा , अंत में एक बात और ज्यादातर लोग अपने अशांत देश को छोड़ के शांति वाले पड़ोसी देश में शरण लेते है जिससे वो हिंसा से बच सके , हा , समुन्द्र के पार वाले मुल्क को भी पडोसी ही बोला जाता है ,अफ़सोस अभी आतंकवाद के नाटक के बाद 2001 से मुस्लिम देश अशांत है तो लोग भूमि की सीमा या समुंदरी सीमा को पार करके अपने पड़ोस के मुल्क में जाते है, अभी यूनाइटेड नेशन द्वारा रिफ्यूजी का बटवारा या बसाव दुसरे मुल्क में भी होता है जिससे के पडोसी देश पे ही सारा बोझ न पढ़ जाए, बाकि रिफ्यूजी का यही इतिहास का भी सत्य है तो यही सत्य वर्तमान का भी है तो भविष्य का भी भी यही सत्य होगा ।

वैसे अंत में सुन लो मैंने मुस्लिम का मुस्लिम देश में रिफ्यूजी का इसमें जिक्र नही किया वरना आज भी 90 % से ज्यादा मुस्लिम , मुस्लिम राष्ट्र की सीमा में ही बसे है चाहे सीरिया के रिफ्यूजी हो या अफ़ग़ान के रिफ्यूजी या अभी अराकान के रोहिंग्या रिफ्यूजी हो ।

बाकि तुमने मदद की भी बात की थी तो सुन लो आज कई सारे मुस्लिम के इंटरनेशनल ऐड ग्रुप है जो दुनिया भर में विपत्ति के वक़्त चाहे युद्ध के कारण हो , या प्राकृतिक आपदा या फिर आंतरिक युद्ध या फिर बीमारी और अकाल से पीड़ित लोग के बीच में काम कर रहे है , जिसमे वो धर्म , नस्ल नही देख रहे है , खैर ,भारत में किसी भी समूह के इंटरनेशनल ऐड ग्रुप नही है लेकिन दुनिया भर के विभिन्न धर्म के लोग अभी सारी दुनिया में विपत्ति में मदद करते है तो एक देश की सरकार भी विपत्ति में फसे देश की आर्थिक और अनाज से मदद करती है अभी ये आम बात है लेकिन ओस्मानिया खलीफा ने 19th शताब्दी में भी सुदूर देश आयरलैंड में जब भयानक अकाल पड़ा था तब आर्थिक मदद के साथ साथ तीन जहाज खाद्य पदार्थ भी भेजा था ।

तुम्हारा प्यारा ,
तुम्हारे शब्दों में फेसबुक का सबसे नेगेटिव इंसान

सरफराज कटिहारी एक प्रसिद्ध फेसबुक ब्लॉगर है 

(ये  लेखक के निजी विचार हैं)


Discover more from Millat Times

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Discover more from Millat Times

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading